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एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते ।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर ।।

श्रीकमलाधिपते श्रीमनलक्ष्मीनारायण सौभाग्य हृदयांश श्रीमद्भगवतभक्ति वेदान्त आचार्य  सीमेश दीक्षित जी
                                       
               
                                                                             
                     
       
     
Jai Maa Bharti

JAI HO
         
                                 
                                       
                     
JagadGuru Swami Shri RamBhadracharaya
Ji Maharaj
       
                                       
       

Shradheya Swami Rajeshwaranand Ji Maharaj

                         
                                       
                     
Aacharya Charak
(Aayurveda Scientist &
Author of Charak Samhita)
       
                                   
             


महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ।
महामृत्युंजय मंत्र के 33 अक्षर हैं। जो महर्षि वशिष्ठ के अनुसार 33 करोड़ देवताओं के प्रतिक हैं। उन तैंतीस देवताओं में 8 वस,ु 11 रुद्र और 12 आदित्य, 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं। इन तैंतीस कोटि देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है

मंत्र इस प्रकार है-
ॐ त्रयंमकम यजामहे, सुंगधीपुष्टीवर्धनम
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृता

महामृत्युंजय मंत्र-संस्कृत में महामृत्युंजय उस व्यक्ति को कहते हैं जो मृत्यु को जीतने वाला हो। ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद में भी इस मंत्र का उल्लेख मिलता हैं। इसके अलावा शिवमहापुराण में इस मंत्र व इसके आशय को विस्तार से बताया गया हैं। रतलाम के अनेक शिवमंदिरों में इस मंत्र का जप निरंतर चलता रहता हैं।

महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरश: अर्थ
त्रयंबकम- त्रि.नेत्रों वाला ;कर्मकारक।
यजामहे- हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं। हमारे श्रद्देय।
सुगंधिम- मीठी महक वाला, सुगंधित।
पुष्टि- एक सुपोषित स्थिति, फलने वाला व्यक्ति। जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम- वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है।
उर्वारुक- ककड़ी।
इवत्र- जैसे, इस तरह।
बंधनात्र- वास्तव में समाप्ति से अधिक लंबी है।
मृत्यु- मृत्यु से
मुक्षिया, हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें।
मात्र न
अमृतात- अमरता, मोक्ष।
सरल अनुवाद
हम त्रि-नेत्रीय वास्तविकता का चिंतन करते हैं। जो जीवन की मधुर परिपूर्णता को पोषित करता है और वृद्धि करता है। ककड़ी की तरह हम इसके तने से अलग हम जीवन व मृत्यु के बंधन से मुक्त हो।

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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
यह एक प्रसिद्ध हिन्दू मंत्र है। यह मंत्र भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण दोनों का मंत्र है। इसमें दो परंपराएं हैं-तांत्रिक और पुराणिक। तांत्रिक पंरपराये में ऋषि प्रजापति आते है और पुराणिक पंरपरा में ऋषि नारदा जी आते है। हालांकि, दोनों कहते हैं कि यह सर्वोच्च विष्णु मंत्र है। शारदा तिलक तन्त्रम कहते है कि ‘देवदर्शन महामंत्र् प्राधन वैष्णवगाम’ बारह वैष्णव मंत्रों में यह मत्रं प्रमुख हैं। इसी प्रकार ‘श्रीमद् भगवतम्’ के 12 अध्याय को इस मंत्र के 12 अक्षर के विस्तार के रूप में लिए गए है। इस मंत्र को मुक्ति का मंत्र कहा जाता है और मोक्ष प्राप्त करने के लिए एक आध्यात्मिक सूत्र के रूप में माना जाता है। यह मंत्र ‘श्रीमद् भगवतम्’ का प्रमुख मंत्र है इस मंत्र का वर्णन विष्णु पुराण में भी मिलता है।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
मंत्र का अर्थ:
ओम - ओम यह ब्रंह्माडीय व लौकीक ध्वनि है।
नमो - अभिवादन व नमस्कार।
भगवते - शक्तिशाली, दयालु व जो दिव्य है।
वासुदेवयः - वासु का अर्थ हैः सभी प्राणियों में जीवन और देवयः का अर्थ हैः ईश्वर। इसका मतलब है कि भगवान (जीवन/प्रकाश) जो सभी प्राणियों का जीवन है।
वासुदेव भगवान! अर्थात् जो वासुदेव भगवान नर में से नारायण बने, उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ। जब नारायण हो जाते हैं, तब वासुदेव कहलाते हैं।
 


Om Namo Bhagavate Vasudevaya this is a famous Hindu mantra. This mantra is the mantra of Lord Vishnu and Shri Krishna. There are two traditions in it - Tantric and Puranic. Tantric and Puranic. In Tantrik Tradition, the Rishi of the Mantra is Prajapati, in Puranic Tradition the Rishi is Narada. However, both say that this is the Supreme Vishnu mantra. Sharada Tilak Tantram says that Dvadasharno mahamantrah pradhano Vaishnavagame' is the chief in twelve Vaishnava mantras. Similarly, the 12th chapter of 'Shrimad Bhagvatam' has been taken as an extension of 12 letters of this mantra. This mantra is called Mantra of salvation and is considered as a spiritual formula for attaining salvation. This mantra is the main mantra of 'Shrimad Bhagvatam', the description of this mantra is also found in Vishnu Purana.
Om Namo Bhagavate Vasudevaya
Meaning of this Mantra:
Om — Om is a Brahminic and cosmic sound.
Namo — Salutation and Obeisance.
Bhagavate — powerful, compassionate and who is divine.
Vasudevaya — Vaasu means: life and god in all creatures means: God It means that God (life / light) is the life

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।। श्री राधा चरण शरणं मम् ।।

राधे श्यामा राधे श्यामा श्यामा श्यामा राधे राधे

राधे श्यामा राधे श्यामा श्यामा श्यामा राधे राधे

श्यामा श्यामा प्यारी श्यामा किशोरी श्यामा राधे राधे

श्यामा श्यामा भोरी श्यामा मेरी श्यामा राधे राधे

राधे श्यामा राधे श्यामा श्यामा श्यामा राधे राधे

जय जय श्री बरसानो धाम
जय वंशी वट जय जय नंदगांम

जय गोवर्धन जय गहवर वन
जय यमुने जय जय वृन्दावन

।। जय जय श्री राधे ।।

               
             
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भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता (६।५) में कहा है–’हे अर्जुन! अपना उद्धार स्वयं के सहारे ही करना चाहिए; क्योंकि हमारी आत्मा ही हमारी मित्र है और आत्मा ही हमारी शत्रु भी। हम ही अपने मित्र या शत्रु हैं।’
 
 
Sharada Tilak Tantram says:

"Dvadasharno mahamantrah pradhano Vaishnavagame"—
Meaning: the twelve lettered mantra is the chief among vaishnava mantras.
Similarly, this is the ultimate mantra in Shrimad Bhagavatam. This twelve syllable mantra[3] is known as a Mukti (liberation) mantra and a spiritual formula for attaining freedom.[4] This mantra can also be found in Vishnu Purana.
 
     
 

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Guru Vishwamitra Ji
( The Inventor of Missiles)
Vishwamitra was first a king and then a Rishi. He ended up becoming one of the most venerated and appreciated Rishi of India. He was a Genius as per the third book of the Rigveda. Thousands of years ago he discovered missiles. He was also a strong warrior, so he taught Rama & Laxaman the way missiles work and function. This is one of the true fact of the sacred power of Ancient India ( HIND ) .
           
 
           
परम पावन प्रयागराज को अपना प्राचीन गौरव प्रदान करने हेतु आदरणीय गौरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ जी का अभिनंदन !
 
           
 
अष्टदल कमल एक हिन्दू प्रतीक है, जिसे महाविष्णु ने दिया, जिन्हें हम श्रीमन लक्ष्मीनारायण कहते हैं। वैदिक धर्म के अनुसार श्रीमहाप्रभु जी के पांव में कमल का चिन्ह है। हालांकि आठ दिशाओं वाली अष्टदल कमल को लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा जाता है , जो श्रीमहाप्रभु की श्री स्वरूपा है , जिस कारण श्रीमहाप्रभु को श्रीमन लक्ष्मीनारायण कहा जाता हैं।
कमल क्या है ? कमल, जो कीचड़ से उठ कर बाहर आता है। देवी लक्ष्मी को यह बेहद प्रिय है। इसका मतलब है कि यह संपन्नता लाने वाला है। अष्टदल कमल परम पवित्र श्रीउर्जा प्रदान करता हैं जो हमे वैभव, यश, सम्पन्नता, श्रीभक्ति  देता है। यह हमारे जीवन मे एक दिव्य दिशा देता है। कमल से जिस देव या देवी को जोड़ा गया है, उनमें देवी लक्ष्मी सबसे पहले आती हैं। देवी लक्ष्मी कमल के आसन पर विराजमान हैं। उनके हाथों में कमल है। उनके गले में भी कमलों की माला है।

अष्टदल कमल यह योग के आठों अंगों को आपके जीवन में उतारता है, जिससे देवी धन लक्ष्मी सहजता से आपके जीवन में प्रवेश करती हैं। वैदिक विज्ञान के अनुसार अष्टदल कमल  को अपने भवन के नॉर्थ-ईस्ट यानी उत्तर-पूर्व में रखना चाहिए। उत्तर-पूर्व दिशा क्षेत्र दिव्यता एवं बुद्धि का क्षेत्र है। यह प्रज्ञा और ध्यान का क्षेत्र है। दूरदृष्टि, पूर्वाभास, विद्वता , प्रेरणा सभी इसी क्षेत्र से आती हैं। चूंकि यह मंदिर के लिए भी आदर्श वास्तु जोन है, इसलिए, अष्टदल कमल  को एक प्लेट में रखकर इसके ऊपर भी देवी-देवताओं को रख कर पूजा कर सकते हैं, क्योंकि हिन्दू धर्म में सारे देवी-देवताओं को अष्टदल कमल में बिठाया गया है। ब्रह्मा,लक्ष्मी, बुद्ध, शिव आदि कई देवी-देवताओं को कमलासन कहा गया है।

अष्टदल कमल को आप अपने घर में किसी भी फॉर्म में, किसी भी रूप में लगा सकते हैं। आप चाहे इसे दीवार पर डेकोरेशन के रूप में लगाना चाहे तो लगा सकते हैं। किसी देवताओं की सीट के स्वरूप में लगा सकते हैं। किसी डिजाईन के फॉर्म में भी लगा सकते हैं, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि यह सही और पॉजिटिव जोन में हो। अष्टदल कमल लगाने से यह निश्चित है कि आपको भविष्य की बेहतर उम्मीद मिलेगी। आपको अपने उज्ज्वल भविष्य का मार्ग श्रीकमल की स्थापना, पूजन से स्वतः ही प्राप्त हो सकती हैं। हमारे श्रीभगवत भक्ति वेदान्त आचार्य सीमेश दीक्षित जी द्वारा श्रीकमल को दिव्य वैदिक मंत्रों से श्रीकृष्णअभिषेकम द्वारा अभिमंत्रित कर स्थापित कराया जाता हैं । आप अपने सौभाग्य जागरण हेतु संपर्क कर सकते हैं। संपर्क सूत्र : 09807941451
 
सौभाग्य वचन : इस संसार मे जो कुछ हैं वह सब साधन है परंतु साध्य कुछ भी नहीं , साध्य तो गोविंद ही हैं , अतः गोविंद की भगवतभक्ति की शरण चलें ! हरे कृष्णा !! स्रोत : श्रीमद्भगवतभक्ति वेदान्त आचार्य सीमेश दीक्षित जी
     
           
 
कहते हैं कि दुनियां में हो रहे सभी खेल-तमाशों का एकमात्र मदारी किसी को दिखाई नहीं देता , खेल फिर भी अनवरत चलता रहता हैं परंतु सत्य तो यह हैं कि कोई ऐसा खेल नहीं जिसमे मदारी न दिखे , समय आने पर हर किरदार दिखता हैं । मदारी तो तटस्थ भाव से खेल के समय साथ मे उपस्थित रहता हैं , जिसे पहचानने के लिए मन की आँखे खोलनी पड़ती हैं । प्रेम से बोलिये .... जय जय श्रीराधे !!
स्रोत : श्रीमद्भगवतभक्ति वेदान्त आचार्य सीमेश दीक्षित जी
   


 
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