श्रीकमलाधिपते श्रीमनलक्ष्मीनारायण सौभाग्य हृदयांश श्रीमद्भगवतभक्ति वेदान्त आचार्य सीमेश दीक्षित जी
Jai Maa Bharti
JAI HO
JagadGuru Swami Shri RamBhadracharaya
Ji Maharaj
Shradheya Swami Rajeshwaranand Ji Maharaj
Aacharya Charak (Aayurveda Scientist &
Author of Charak Samhita)
Services :
MahaRudrabhishekam ( Solution to remove All Obstacles in life )
महारुद्राभिषेक भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे प्रभावी उपाय है। श्रावण मास या शिवरात्रि के दिन यदि रुद्राभिषेक किया जाये तो इसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। जीवन में कोई कष्ट हो या कोई मनोकामना हो तो सच्चे मन से रुद्राभिषेक कर के देखें निश्चित रूप से अभीष्ट लाभ की प्राप्ति होगी। रुद्राभिषेक ग्रह से संबंधित दोषों और रोगों से भी छुटकारा दिलाता है। शिवरात्रि, प्रदोष और सावन के सोमवार को यदि रुद्राभिषेक करेंगे तो जीवन में चमत्कारिक परिवर्तनों का अनुभव करेंगे , और शिव कृपा प्राप्त करेंगे ।
भगवान शिव ने कहा- हे प्रिये! जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है वह आशुतोषस्वरूप मेरा विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति हेतु अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है उसे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ। जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है अर्थात यदि कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए यदि कोई रोग दुःख से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना चाहिए।
रुद्र भगवान शिव का ही प्रचंड रूप हैं। इनका अभिषेक करने से सभी ग्रह बाधाओं और सारी समस्याओं का नाश होता है। रुद्राभिषेक में शुक्ल यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों का पाठ किया जाता है। अभिषेक के कई प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा कराना। वैसे भी भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना जाता है क्योंकि वह अपनी जटा में गंगा को धारण किये हुए हैं।
रुद्राभिषेक से होने वाले लाभ
आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे हैं उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए इसका उल्लेख शिव पुराण में किया गया है। वहीं से उद्धृत कर हम आपको यहां जानकारी दे रहे हैं-
- यदि वर्षा चाहते हैं तो जल से रुद्राभिषेक करें।
- रोग और दुःख से छुटकारा चाहते हैं तो कुशा जल से अभिषेक करना चाहिए।
- मकान, वाहन या पशु आदि की इच्छा है तो दही से अभिषेक करें।
- लक्ष्मी प्राप्ति और कर्ज से छुटकारा पाने के लिए गन्ने के रस से अभिषेक करें।
- धन में वृद्धि के लिए जल में शहद डालकर अभिषेक करें।
- मोक्ष की प्राप्ति के लिए तीर्थ से लाये गये जल से अभिषेक करें।
- बीमारी को नष्ट करने के लिए जल में इत्र मिला कर अभिषेक करें।
- पुत्र प्राप्ति, रोग शांति तथा मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए गाय के दुग्ध से अभिषेक करें।
- ज्वर ठीक करने के लिए गंगाजल से अभिषेक करें।
- सद्बुद्धि और ज्ञानवर्धन के लिए दुग्ध में चीनी मिलाकर अभिषेक करें।
- वंश वृद्धि के लिए घी से अभिषेक करना चाहिए।
- शत्रु नाश के लिए सरसों के तेल से अभिषेक करें।
- पापों से मुक्ति चाहते हैं तो शुद्ध शहद से रुद्राभिषेक करें।
कहां करना चाहिए रुद्राभिषेक
- यदि किसी मंदिर में जाकर रुद्राभिषेक करेंगे तो बहुत उत्तम रहेगा।
- किसी ज्योतिर्लिंग पर रुद्राभिषेक का अवसर मिल जाए तो इससे अच्छी कोई बात नहीं।
- नदी किनारे या किसी पर्वत पर स्थित मंदिर के शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करना सबसे ज्यादा फलदायी है।
- कोई ऐसा मंदिर जहां गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित हो वहां पर रुद्राभिषेक करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।
- घर में भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है।
- शिवलिंग न हो तो अंगूठे को भी शिवलिंग मानकर उसका अभिषेक कर सकते हैं।
ध्यान रखें कि रुद्राभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करना चाहिए। तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए। तांबे के पात्र में जल का तो अभिषेक हो सकता है लेकिन तांबे के साथ दूध का संपर्क उसे विष बना देता है इसलिए तांबे के पात्र में दूध से अभिषेक वर्जित होता है। यदि चाँदी का पात्र हो तो उत्तम रहता हैं , जो भगवान शिव की प्रसन्नता एवं चंद्र देव के सकारात्मक प्रभाव की वृद्धि करने हेतु अतिउत्तम हैं। वैदिक संस्कृति संस्थानम के सुयोग्य आचार्यों द्वारा शुभ महूर्त में रुद्राभिषेक हेतु संपर्क करें । 09389060681
रामायण की लगभग सभी कथाओं से हम परिचित ही हैं , लेकिन इस महाकाव्य में रहस्य बनकर छुपी हैं कुछ ऐसी छोटी छोटी कथाएं जिनसे हम लोग परिचित नहीं हैं , तो आइये जानते हैं वे कौन सी दस बातें हैं जो रामायण के विषय में हम नहीं जानते : 1. रामायण राम के जन्म से कई साल पहले लिखी जा चुकी थी | रामायण महाकाव्य की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की है। इस महाकाव्य में 24 हजार श्लोक, पांच सौ उपखंड तथा उत्तर सहित सात कांड हैं।
2. वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को, पुनर्वसु नक्षत्र में कर्क लग्न में हुआ था। उस समय सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ गुरु विराजमान थे। यह सबसे उत्कृष्ट ग्रह दशा होती है , इस घड़ी में जन्म बालक अलौकिक होता है
3. जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।
4. रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है) 5. सभी जानते हैं कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा की नाक काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का श्राप दिया था। क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति विद्युतजिव्ह का वध रावण ने कर दिया था। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।
6. कहते हैं जब हनुमान जी ने लंका में आग लगाई थी, और वे एक सिरे से दूसरे सिरे तक जा रहे थे, तो उनकी नजर शनी देव पर पड़ गयी ! वे एक कोठरी में बंधे पड़े थे ! हनुमान जी ने उन्हें बंधन मुक्त किया ! मुक्त होने पर उन्होंने हनुमान जी के बल बुद्धी की भी परिक्षा ली और जब उन्हें यकीन हो गया कि वव सचमुच में भगवान रामचंद्र जी के दूत हनुमान जी हैं तो उन्होंने हनुमान जी से कहा कि "इस पृश्वी पर जो भी आपका भक्त होगा उसे मैं अपनी कुदृष्टि से दूर ही रखूंगा, उसे कभी कोइ कष्ट नहीं दूंगा " ! इस तरह शनिवार को भी मदिरों में हनुमान चालीसा का पाठ होता है तथा आरती गाई जाती है ! 7. जब खर दूषण मारे गए, तो एक दिन भगवान राम चन्द्र जी ने सीता जी से कहा, "प्रिये अब मैं अपनी लीला शुरू करने जा रहा हूँ ! खर दूषण मारे गए, सूर्पनखां जब यह समाचार लेकर लंका जाएगी तो रावण आमने सामने की लड़ाई तो नहीं करेगा बल्की कोई न कोई चाल खेलेगा और मुझे अब दुष्टों को मारने के लिए लीला करनी है ! जब तक मैं पूरे राक्षसों को इस धरती से नहीं मिटा देता तब तक तुम अग्नि की सुरक्षा में रहो" ! भगवान् रामचंद्र जी ने उसी समय अग्नि प्रज्वलित की और सीता जी भगवान जी की आज्ञा लेकर अग्नि में प्रवेश कर गयी ! सीता माता जी के स्थान पर ब्रह्मा जी ने सीता जी के प्रतिबिम्ब को ही सीता जी बनाकर उनके स्थान पर बिठा दिया ! 8. अग्नि परीक्षा का सच :- रावण जिन सीतामाता का हरण कर ले गया था वे सीता माता का प्रतिबिम्ब थीं , और लौटने पर श्री राम ने यह पुष्टि करने के लिए कि कहीं रावण द्वारा उस प्रतिबिम्ब को बदल तो नहीं दिया गया , सीतामाता से अग्नि में प्रवेश करने को कहा जो कि अग्नि के घेरे में पहले से सुरक्षित ध्यान मुद्रा में थीं , अपने प्रतिबिम्ब का संयोग पाकर वे ध्यान से बाहर आईं और राम से मिलीं | 9. आधुनिक काल वाले वानर नहीं थे हनुमान जी :- कहा जाता है कि कपि नामक एक वानर जाति थी। हनुमानजी उसी जाति के ब्राह्मण थे।शोधकर्ताओं के अनुसार भारतवर्ष में आज से 9 से 10 लाख वर्ष पूर्व बंदरों की एक ऐसी विलक्षण जाति में विद्यमान थी, जो आज से लगभग 15 हजार वर्ष पूर्व विलुप्त होने लगी थी और रामायण काल के बाद लगभग विलुप्त ही हो गई। इस वानर जाति का नाम `कपि` था। मानवनुमा यह प्रजाति मुख और पूंछ से बंदर जैसी नजर आती थी। भारत से दुर्भाग्यवश कपि प्रजाति समाप्त हो गई, लेकिन कहा जाता है कि इंडोनेशिया देश के बाली नामक द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है। 10. विश्व में रामायण का वाचन करने वाले पहले वाचक कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान श्री राम के पुत्र लव और कुश थे | जिन्होंने रामकथा स्वयं अपने पिता श्री राम के आगे गायी थी | पहली रामकथा पूरी करने के बाद लव कुश ने कहा भी था- हे पितु भाग्य हमारे जागे, राम कथा कहि राम के आगे |
लगभग 28 रामायण प्रचलन में हैं: 1. अध्यात्म रामायण, 2. वाल्मीकि की 'रामायण' (संस्कृत), 3. आनंद रामायण, 4. 'अद्भुत रामायण', 5. रंगनाथ रामायण (तेलुगु), 6. कवयित्री मोल्डा रचित मोल्डा रामायण (तेलुगु), 7. रूइपादकातेणपदी रामायण (उड़िया), 8. रामकेर (कंबोडिया), 9. तुलसीदास की 'रामचरित मानस' (अवधी), 10. कम्बन की 'इरामावतारम' (तमिल), 11. कुमार दास की 'जानकी हरण' (संस्कृत), 12. मलेराज कथाव (सिंहली), 13. किंरस-पुंस-पा की 'काव्यदर्श' (तिब्बती), 14. रामायण काकावीन (इंडोनेशियाई कावी), 15. हिकायत सेरीराम (मलेशियाई भाषा), 16. रामवत्थु (बर्मा), 17. रामकेर्ति-रिआमकेर (कंपूचिया खमेर), 18. तैरानो यसुयोरी की 'होबुत्सुशू' (जापानी), 19. फ्रलक-फ्रलाम-रामजातक (लाओस), 20. भानुभक्त कृत रामायण (नेपाल), 21. अद्भुत रामायण, 22. रामकियेन (थाईलैंड), 23. खोतानी रामायण (तुर्किस्तान), 24. जीवक जातक (मंगोलियाई भाषा), 25. मसीही रामायण (फारसी), 26.मसीह की 'दास्ताने राम व सीता', 27. महालादिया लाबन (मारनव भाषा, फिलीपींस), 28. दशरथ कथानम (चीन) आदि। वैदिक परम्परानुसार सनातन विधान से श्रेष्ठ वैष्णव आचार्य से श्रीराम कथा के नवदिवसीय अनुष्ठान से सभी इक्षित मनोरथ पूर्ण होते हैं। अतः सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाली परम पवित्र श्रीराम कथाका श्रीमद्भगवतभक्ति वेदान्त आचार्य सीमेश दीक्षित जी के श्रीमुख से श्रवण करने हेतु हमारे विश्वव्यापी भगवतभक्ति संकीर्तन समूह से संपर्क कर सकते हैं। संपर्क सूत्र : 09807941451
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नीलाम्बुज श्यामल कोमलांगम सीतासमारोपित वामभागम् |
पाणौ महासायकचारूचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम् ||
- रामचरितमानस हिंदी (अयो. का. श्लोक ३)
व्याख्या:- घने नीले बादल के समान श्याम रंग वाले प्रभु श्री राम, जिनके बायीं और कोमल अंगों वाली सीता जी विराजमान हैं, जिन प्रभु श्री राम के हाथों में शत्रुओं को जीतने वाला महा धनुष है, उन भगवान् श्री राम को नमस्कार करता हूँ. प्रभु श्री राम का रंग नीला क्यों बताया गया है इसके पीछे वैज्ञानिक रहस्य है कि हमारी भौंहों के बीच स्थित आज्ञा चक्र का रंग भी गहरा नीला बताया गया है. अतः प्रभु श्री राम के नीलाम्बर स्वरूप का ध्यान करने से स्वतः आज्ञा चक्र जाग्रत हो जाता है. दूसरा कारण ये है की नीले रंग का प्रकाश (जैसे अल्ट्रावोइलेट) समस्त प्रकार की अशुद्धियों को नष्ठ करने वाला होता है अतः इस प्रकार प्रभु श्री राम के नीलाम्बर वर्ण का ध्यान करने से हमारे सम्पूर्ण शारीरिक और मानसिक रोगों का नाश हो जाता है। श्रीप्रभु को नित्य स्मरण करने का भगवतभक्ति एक सुगम सन्मार्ग हैं । जय जय सीताराम !!
श्रीमद्भागवत एक ज्ञान यज्ञ है। यह मानवीय जीवन को रसमय बना देता है। भगवन् कष्ष्ण की अद्भूत लीलाओं का वर्णन इसमें समाहित है। भव-सागर से पार पाने के लिये श्रीमद्भागवत कथा एक सुन्दर सेतु है। श्रीमद्भागवत कथा सुनने से जीवन धन्य-धन्य हो जाता है। इस पुराण में 18 स्कन्ध एवं 335 अध्याय हैं। ब्यास जी ने 17 पुराणों की रचना कर ली लेकिन श्रीमद्भागवत कथा लिखने पर ही उन्हें सन्तोष हुआ। फिर ब्यास जी ने अपने पुत्र शुकदेव जी को श्रीमद्भागवत पढ़ायी, तब शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को जिन्हें सात दिन में मरने का श्राप मिला, उन्हें सात दिनों तक श्रीमद्भागवत की कथा सुनायी। जिससे राजा परीक्षित को सात दिन में मोक्ष की प्राप्ति हुयी।
निगमकल्पतरोर्गलितं फलं शुकमुखादमृतं द्रवसंयुतं।
पिवत भागवतं रसमालयं महुरसो रसिका भुविभावुकाः।।
श्रीमद्भागवत वेद रूपी वष्क्षों से निकला एक पका हुआ फल है। शुकदेव जी महाराज जी के श्रीमुख के स्पर्श होने से यह पुराण अमश्तमय एवं मधुर हो गया है। इस फल में न तो छिलका है, न गुठलियाँ हैं और न ही बीज हैं। अर्थात इसमें कुछ भी त्यागने योग्य नहीं हैं सब जीवन में ग्रहण करने योग्य है। द्रवमय अमष्त से भरे इस रस का पान करने से जीवन धन्य-धन्य हो जाता है। इसलिये अधिक से अधिक श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करना चाहिये। जितनी ज्यादा कथा सुनेंगे उतना ही जीवन सुधरेगा।
पित्रों का उद्धार करता है श्रीमद्भागवत:-
श्रीमद्भागवत करने से पित्रों का उद्धार हो जाता है। भागवत पुराण करवाने वाला अपना उद्धार तो करता ही है अपितु अपने सात पीढि़यों का उद्धार कर देता है। पापी से पापी व्यक्ति भी यदि सच्चे मन से श्रीमद्भागवत की कथा सुन ले तो उसके भी समस्त पाप दूर हो जाते हैं। जीवन पर्यन्त कोई पाप कर्म करता रहे और पाप कर्म करते-करते मर जाय एवं भयंकर भूत-प्रेत योनि में चला जाय, यदि उसके नाम से हम श्रीमद्भागवत कथा करवायें तो वह भी बैकुण्ठ-लोक को प्राप्त करता है
श्रीमद्भागवत कथा सुनने का फल:-
मानव जीवन सबसे उत्तम और अत्यन्त दुर्लभ है। श्रीगोविन्द की विशेष कष्पा से हम मानव-योनि में आये हैं। भगवान के भजन करने के लिये ही हमें यह जीवन मिला है और श्रीमद्भागवत कथा सुनने से या करने से हम अपना मानव जीवन में जन्म लेना सार्थक बना सकते हैं। श्रीमद्भागवत कथा सुनने के अनन्त फल हैं।
1. श्रीमद्भागवत कथा सुनने से मनुष्य को आत्मज्ञान होता है। भगवान की दिव्य लीलाओं को सुनकर मनुष्य अपने ऊपर परमात्मा की विशेष अनुकम्पा का अनुभव करता है।
2. श्रीमद्भागवत कथा करने से मनुष्य अपने सुन्दर भाग्य का निर्माण शुरू कर देता है। वह ईह लोक में सभी प्रकार के भोगों को भोग कर परलोक में भी श्रेष्ठता को प्राप्त करता है।
3. श्रीमद्भागवत कथा मनुष्य को जीना सिखाती है तथा मष्त्यु के भय से दूर करती है एवं पित्र दोषों को शान्त करती है।
4. जिस व्यक्ति ने जीवन में कोई सत्कर्म न किया हो, सदैव दुराचार में लिप्त रहा हो, क्रोध रूपी अग्नि में जो हमेशा जलता रहा हो, जो व्यभिचारी हो गया हो, परस्त्रीगामी हो गया हो, यदि वह व्यक्ति भी श्रीमद्भागवत की कथा करवाये तो वह भी पापों से मुक्त हो जाता है।
5. जो सत्य से विहीन हो गये हों, माता-पिता से भी द्वेष करने लगे हों, अपने धर्म का पालन न करते हों, वे भी यदि श्रीमद्भागवत कथा सुनें तो वे भी पवित्र हो जाते हैं।
6. मन-वाणी, बुद्धि से किया गया कोई भी पापकर्म-चोरी करना, छद्म करना, दूसरों के धन से अपनी आजीविका चलाना, ब्रह्म-हत्या करने वाला भी यदि सच्चे मन से श्रीमद्भागवत कथा सुनले तो उसका भी जीवन पवित्र हो जाता है।
7. जीवन-पर्यन्त पाप करने के पश्चात् मरने के बाद भयंकर प्रेत-योनि (भूत योनि) में चला गया व्यक्ति के नाम पर भी यदि हम श्रीमद्भागवत की कथा करवायें तो वह भी प्रेत-योनि से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
श्रीमद्भागवत कथा करवाने का मुहुर्त:-
श्रीमद्भागवत कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। भागवत् के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन श्रीमद्भागवत कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है। पितरों के निमित्त उनकी मोक्ष तिथि को लेना चाहिये।
श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन कहाँ करें?:-
श्रीमद्भागवत कथा करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में श्रीमद्भागवत कथा करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। कथा के लिये स्थान का सुविचार कर सर्वप्रथम भूमि का मार्जन और गोबर से लेप करना चाहिये। वहाँ एक मण्डप और उसके ऊपर गुम्बद के आकार का चन्दोवा लगाकर तथा हनुमान जी के लिये एक झण्डा लगायें तथा पित्रों के निमित्त एक सात गाँठ वाले बाँस लगायें।
श्रीमद्भागवत कथा करने के नियम:-
श्रीमद्भागवत कथा का वक्ता विद्वान ब्राह्मण, शास्त्रज्ञ, देवभक्त, निर्लोभी, आचारवान, संयमी, एवं संशय निवारण में समर्थ होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। श्रीमद्भागवत कथा में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।
प्रातःकाल स्नानादि से निवष्त्त होकर स्वच्छ वस्त्रों को धारण करके कलश की स्थापना करनी चाहिये। गणेश, नवग्रह, योगिनी, मातष्का, क्षेत्रपाल, बटुक, तुलसी, विष्णु, शंकर आदि की पूजा करके भगवान नारायण की अराधना करनी चाहिये। कथा के दिनों में श्रोता एवं वक्ता को क्षौर-मुण्डन आदि नहीं कराना चाहिये। उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन, सात्विक भोजन, संयमित, शुद्ध आचरण तथा अहिंसाशील होना चाहिये। प्याज, लहसून, माँस-मदिरा, धूम्रपान इत्यादि तामस पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिये तथा वक्ता एवं श्रोता को इनका तथा स्त्री संग का त्याग करना चाहिये।
श्रीमद्भागवत कथा में कितना धन लगता है?:-
इस भौतिक युग में बिना धन के कुछ भी सम्भव नहीं एवं बिना धन के धर्म भी नहीं होता। पुराणों में वर्णन है कि पुत्री के विवाह में जितना धन लगे उतना ही धन श्रीमद्भागवत कथा में लगाना चाहिये और पुत्री के विवाह में जितनी खुशी हो उतनी ही खुशी मन से श्रीमद्भागवत कथा को करना चाहिये।
परम पवित्र श्रीमद्भागवत महापुराण का वैदिक विधान के अनुसार श्रीमद्भगवतभक्तिवेदान्त आचार्य सीमेश दीक्षितजी के श्रीमुख से श्रवण हेतु हमारे विश्वव्यापी भगवतभक्ति संकीर्तन समूह से संपर्क कर सकते हैं। संपर्क सूत्र : 09389060681
Om Namo Bhagavate Vasudevaya this is a famous Hindu mantra. This mantra is the mantra of Lord Vishnu and Shri Krishna. There are two traditions in it - Tantric and Puranic. Tantric and Puranic. In Tantrik Tradition, the Rishi of the Mantra is Prajapati, in Puranic Tradition the Rishi is Narada. However, both say that this is the Supreme Vishnu mantra. Sharada Tilak Tantram says that Dvadasharno mahamantrah pradhano Vaishnavagame' is the chief in twelve Vaishnava mantras. Similarly, the 12th chapter of 'Shrimad Bhagvatam' has been taken as an extension of 12 letters of this mantra. This mantra is called Mantra of salvation and is considered as a spiritual formula for attaining salvation. This mantra is the main mantra of 'Shrimad Bhagvatam', the description of this mantra is also found in Vishnu Purana. Om Namo Bhagavate Vasudevaya
Meaning of this Mantra: Om — Om is a Brahminic and cosmic sound. Namo — Salutation and Obeisance. Bhagavate — powerful, compassionate and who is divine. Vasudevaya — Vaasu means: life and god in all creatures means: God It means that God (life / light) is the life
* To open the door of fortune chanting of the divine Shree Krishna Maha Mantra along with Shrimad Bhagwatam is very much useful. For Shrimed Bhaagwatam Discourses consider to Shrimed BhagwatBhakti Vedant Aacharya Seemesh Dixit JI .
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भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता (६।५) में कहा है–’हे अर्जुन! अपना उद्धार स्वयं के सहारे ही करना चाहिए; क्योंकि हमारी आत्मा ही हमारी मित्र है और आत्मा ही हमारी शत्रु भी। हम ही अपने मित्र या शत्रु हैं।’
Meaning: the twelve lettered mantra is the chief among vaishnava mantras.
Similarly, this is the ultimate mantra in Shrimad Bhagavatam. This twelve syllable mantra[3] is known as a Mukti (liberation) mantra and a spiritual formula for attaining freedom.[4] This mantra can also be found in Vishnu Purana.
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प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली चिकित्सा की एक रचनात्मक विधि है, जिसका लक्ष्य प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्त्वों के उचित इस्तेमाल द्वारा रोग का मूल कारण समाप्त करना है। यह न केवल एक चिकित्सा पद्धति है बल्कि मानव शरीर में उपस्थित आंतरिक महत्त्वपूर्ण शक्तियों या प्राकृतिक तत्त्वों के अनुरूप एक जीवन-शैली है। यह जीवन कला तथा विज्ञान में एक संपूर्ण क्रांति है।
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VAIDIC ASTROLOGY -
Vaidic Astrology is the most ancient of all sciences. Astrological predictions cannot be simply based upon strict hypothetical principles or guesses but a certain amount of intuitive capacity must be need for accurate conclusion. Astrology is a true science which comprises the the forecast of the future on the basis of regular movement of planets. It is also called Jyotish means knowledge of light which is actualy the basic root of all the creations. Astrology is derived from Aster-a star and Logos - reason or Logic. Astrology is capable for true forecast of fortunes and misfortunes of men, nations, cyclones, earthquakes, solar & lunar eclipse, diseases & cure, even present, past & future.
NUMEROLOGY -
This is one of the vaidic science depend on the science of Numbers (Numero). The logic of numbers capable to open a golden way for one's life. By the help of this science we can set our name, city, place, work, marriage, vehicle etc. as per numero. norms which magically opens a fortune door.
TAROT READING -
This is a science which tells the future on the basis of Tarot card. The lord related to card indicates the future predictions.
FENGSHUI -
This is a science depend on water and air.Water flows and store energy and air transfer the energy. This science help to set the energy level for perfect living, health, progress, name-fame and fortune.
Vaastu :
Vaastu Shastra is an ancient Indian Vaidic science of architecture. Ancient vaidic experts derived vaastu shastra for the welfare of mankind. It's precious knowledge is capable to help us in peaceful and prosperous living, perfect health and wealth, spiritual benefits, positive energy and thinking, progress and achievements etc. You can set your home/office/residential or commercial places as per Vaastu norms. by a perfect vaastu expert and can achieve all the benefits.
Accupressure -
This is a natural process of treatmet for all diseases. By this prakritic chikitsa vighyan various diseases can be cure naturally without any medicine.
Swar Vighyan -
By this process many physical problems can be cure naturally with the help of sanskrit language swars & mantras.
HEALING -
In this process any type of problem, disease can be cure by the energy healing, dousing process with the help of pyramids, crystals, gems etc.
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Maharshi Bharadwaj (Founder of Ancient Rockets & Aeroplanes)
Maharshi Patanjali (Founder of Yoga Sutra)
Guru Vishwamitra Ji (
The Inventor of Missiles)
Vishwamitra was first a king and then a Rishi. He ended up becoming one of the most venerated and appreciated Rishi of India. He was a Genius as per the third book of the Rigveda. Thousands of years ago he discovered missiles. He was also a strong warrior, so he taught Rama & Laxaman the way missiles work and function. This is one of the true fact of the sacred power of Ancient India ( HIND ) .
परम पावन प्रयागराज को अपना प्राचीन गौरव प्रदान करने हेतु आदरणीय गौरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ जी का अभिनंदन !
अष्टदल कमल एक हिन्दू प्रतीक है, जिसे महाविष्णु ने दिया, जिन्हें हम श्रीमन लक्ष्मीनारायण कहते हैं। वैदिक धर्म के अनुसार श्रीमहाप्रभु जी के पांव में कमल का चिन्ह है। हालांकि आठ दिशाओं वाली अष्टदल कमल को लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा जाता है , जो श्रीमहाप्रभु की श्री स्वरूपा है , जिस कारण श्रीमहाप्रभु को श्रीमन लक्ष्मीनारायण कहा जाता हैं।
कमल क्या है ? कमल, जो कीचड़ से उठ कर बाहर आता है। देवी लक्ष्मी को यह बेहद प्रिय है। इसका मतलब है कि यह संपन्नता लाने वाला है। अष्टदल कमल परम पवित्र श्रीउर्जा प्रदान करता हैं जो हमे वैभव, यश, सम्पन्नता, श्रीभक्ति देता है। यह हमारे जीवन मे एक दिव्य दिशा देता है। कमल से जिस देव या देवी को जोड़ा गया है, उनमें देवी लक्ष्मी सबसे पहले आती हैं। देवी लक्ष्मी कमल के आसन पर विराजमान हैं। उनके हाथों में कमल है। उनके गले में भी कमलों की माला है।
अष्टदल कमल यह योग के आठों अंगों को आपके जीवन में उतारता है, जिससे देवी धन लक्ष्मी सहजता से आपके जीवन में प्रवेश करती हैं। वैदिक विज्ञान के अनुसार अष्टदल कमल को अपने भवन के नॉर्थ-ईस्ट यानी उत्तर-पूर्व में रखना चाहिए। उत्तर-पूर्व दिशा क्षेत्र दिव्यता एवं बुद्धि का क्षेत्र है। यह प्रज्ञा और ध्यान का क्षेत्र है। दूरदृष्टि, पूर्वाभास, विद्वता , प्रेरणा सभी इसी क्षेत्र से आती हैं। चूंकि यह मंदिर के लिए भी आदर्श वास्तु जोन है, इसलिए, अष्टदल कमल को एक प्लेट में रखकर इसके ऊपर भी देवी-देवताओं को रख कर पूजा कर सकते हैं, क्योंकि हिन्दू धर्म में सारे देवी-देवताओं को अष्टदल कमल में बिठाया गया है। ब्रह्मा,लक्ष्मी, बुद्ध, शिव आदि कई देवी-देवताओं को कमलासन कहा गया है।
अष्टदल कमल को आप अपने घर में किसी भी फॉर्म में, किसी भी रूप में लगा सकते हैं। आप चाहे इसे दीवार पर डेकोरेशन के रूप में लगाना चाहे तो लगा सकते हैं। किसी देवताओं की सीट के स्वरूप में लगा सकते हैं। किसी डिजाईन के फॉर्म में भी लगा सकते हैं, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि यह सही और पॉजिटिव जोन में हो। अष्टदल कमल लगाने से यह निश्चित है कि आपको भविष्य की बेहतर उम्मीद मिलेगी। आपको अपने उज्ज्वल भविष्य का मार्ग श्रीकमल की स्थापना, पूजन से स्वतः ही प्राप्त हो सकती हैं। हमारे श्रीभगवत भक्ति वेदांत आचार्य सीमेश दीक्षित जी द्वारा श्रीकमल को दिव्य वैदिक मंत्रों से श्रीकृष्णअभिषेकम द्वारा अभिमंत्रित कर स्थापित कराया जाता हैं । आप अपने सौभाग्य जागरण हेतु संपर्क कर सकते हैं। संपर्क सूत्र : 09807941451
सौभाग्य वचन : इस संसार मे जो कुछ हैं वह सब साधन है परंतु साध्य कुछ भी नहीं , साध्य तो गोविंद ही हैं , अतः गोविंद की भगवतभक्ति की शरण चलें ! हरे कृष्णा !! स्रोत : श्रीमद्भगवतभक्ति वेदान्त आचार्य सीमेश दीक्षित जी
कहते हैं कि दुनियां में हो रहे सभी खेल-तमाशों का एकमात्र मदारी किसी को दिखाई नहीं देता , खेल फिर भी अनवरत चलता रहता हैं परंतु सत्य तो यह हैं कि कोई ऐसा खेल नहीं जिसमे मदारी न दिखे , समय आने पर हर किरदार दिखता हैं । मदारी तो तटस्थ भाव से खेल के समय साथ मे उपस्थित रहता हैं , जिसे पहचानने के लिए मन की आँखे खोलनी पड़ती हैं । प्रेम से बोलिये .... जय जय श्रीराधे !! स्रोत : श्रीमद्भगवतभक्ति वेदान्त आचार्य सीमेश दीक्षित जी
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मनुष्य को अपना मन एकमात्र श्रीकृष्ण पर एकागृत कर भगवतभक्ति में संलग्न हो जाना चाहिये और जो जीव अपने नित्य कर्म फलों को श्रीमहाप्रभु के श्रीचरणों में नित्य समर्पित करता रहता हैं और निष्काम भाव से भगवतभक्ति में अनुरक्त रहता हैं उसे निश्चित ही श्रीमहाप्रभु की श्रीकृपा प्राप्त होती हैं । साभार : श्रीमद्भगवतभक्ति वेदान्त आचार्य सीमेश दीक्षित जी
षोडश संस्कार
गर्भाधान संस्कार ( Garbhaadhan Sanskar) – यह ऐसा संस्कार है जिससे हमें योग्य, गुणवान और आदर्श संतान प्राप्त होती है। शास्त्रों में मनचाही संतान प्राप्त के लिए गर्भधारण संस्कार किया जाता है। इसी संस्कार से वंश वृद्धि होती है , और उत्तम संस्कारों से युक्त संतान प्राप्त होती हैं।
पुंसवन संस्कार (Punsavana Sanskar)– गर्भस्थ शिशु के बौद्धिक और मानसिक विकास के लिए यह संस्कार किया जाता है। पुंसवन संस्कार के प्रमुख लाभ ये है कि इससे स्वस्थ, सुंदर गुणवान संतान की प्राप्ति होती है, जो आपको अपने श्रेष्ठ आचरणों से जीवन मे सुख , सम्पन्नता और यश की प्राप्ति करा सकता हैं।
सीमन्तोन्नयन संस्कार (Simantonayan Sanskar) – यह संस्कार गर्भ के चौथे, छठवें और आठवें महीने में किया जाता है। इस समय गर्भ में पल रहा बच्चा सीखने के काबिल हो जाता है। उसमें अच्छे गुण, स्वभाव और कर्म का ज्ञान आए, इसके लिए मां उसी प्रकार आचार-विचार, रहन-सहन और व्यवहार करती है। इस पवित्र संस्कार को विधि पूर्वक सम्पन्न कराने से गर्भस्थ शिशु जन्म से पूर्व ही दिव्य संस्कारों से पूर्ण हो जाता हैं जो उसे श्रेष्ठ जीवन जीने में बहुत सहायक होते हैं ।
जातकर्म संस्कार (Jaat-Karm Sansakar) – बालक का जन्म होते ही इस संस्कार को करने से शिशु के कई प्रकार के दोष दूर होते हैं। इसके अंतर्गत शिशु को शहद और घी चटाया जाता है साथ ही वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप बच्चा स्वस्थ और दीर्घायु होता हैं।
नामकरण संस्कार (Naamkaran Sanskar)- शिशु के जन्म के बाद 11वें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है। योग्य दीक्षित ब्राह्मण द्वारा वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुभ महूर्त में बच्चे का नामकारण किया जाता है, जिसमे वैदिक विधा (Numerology ) का विशेष प्रयोग किया जाता हैं जो उज्ज्वल भविष्य हेतु आवश्यक हैं।
निष्क्रमण संस्कार (Nishkraman Sanskar) – निष्क्रमण का अर्थ है बाहर निकालना। जन्म के चौथे महीने में यह संस्कार किया जाता है। हमारा शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश जिन्हें पंचभूत कहा जाता है, से बना है। इसलिए पिता इन देवताओं से बच्चे के कल्याण की प्रार्थना करते हैं। साथ ही कामना करते हैं कि शिशु दीर्घायु रहे और स्वस्थ रहे।
अन्नप्राशन संस्कार ( Annaprashana) – यह संस्कार बच्चे के दांत निकलने के समय अर्थात 6-7 महीने की उम्र में किया जाता है। इस संस्कार के बाद बच्चे को अन्न खिलाने की शुरुआत हो जाती है। शुद्ध चांदी के पात्र में विशेष अभिमंत्रित पकवान श्रीप्रभु को भोग लगाकर विशिष्ठ महूर्त में योग्य आचार्यों के सानिध्य में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ बच्चे को खिलाया जाता हैं ।
मुंडन संस्कार ( Mundan Sanskar)- जब शिशु की आयु एक वर्ष हो जाती है तब या तीन वर्ष की आयु में या पांचवे या सातवे वर्ष की आयु में बच्चे के बाल उतारे जाते हैं जिसे मुंडन संस्कार कहा जाता है। इस संस्कार से बच्चे का सिर मजबूत होता है तथा बुद्धि तेज होती है। साथ ही शिशु के बालों में चिपके कीटाणु नष्ट होते हैं जिससे शिशु को स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। इस प्रक्रिया से शिशु में तार्किक शक्ति प्रकट होती हैं और मेधा का विकास होता हैं।
विद्या आरंभ संस्कार ( Vidhya Arambha Sanskar )- इस संस्कार के माध्यम से शिशु को दिव्य वैदिक विज्ञान की शिक्षा दी जाती है। शिशु को शिक्षा के वैदिक प्रारंभिक स्तर से परिचित कराया जाता है। शुभ महूर्त किया गया यह पुनीत कार्य माँ सरस्वती की कृपा से सफल सिद्ध होता हैं।
कर्णवेध संस्कार ( Karnavedh Sanskar) – इस संस्कार में कान छेदे जाते है । इसके दो कारण हैं, एक- आभूषण पहनने के लिए। दूसरा- कान छेदने से एक्यूपंक्चर होता है। इससे मस्तिष्क तक जाने वाली नसों में रक्त का प्रवाह ठीक होता है। इससे श्रवण शक्ति बढ़ती है और अनेक प्रकार के रोगों की रोकथाम हो जाती है । अनेक प्रकार के संक्रमणों से सुरक्षा इस विधान से स्वयं हो जाती हैं।
उपनयन या यज्ञोपवित संस्कार (Yagyopaveet Sanskar) – उप यानी पास और नयन यानी ले जाना। गुरु के पास ले जाने का अर्थ है उपनयन संस्कार। आज भी यह परंपरा है। जनेऊ यानि यज्ञोपवित में तीन सूत्र होते हैं। ये तीन देवता- ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रतीक हैं। इस संस्कार से शिशु को बल, ऊर्जा और तेज प्राप्त होता है। गुरु की कृपा प्राप्ति से दिव्य शिक्षा द्वारा दीक्षित हो जीवन मे यश प्राप्ति स्वतः सुलभ हो जाती हैं।
वेदारंभ संस्कार (Vedaramba Sanskar) – इसके अंतर्गत व्यक्ति को वेदों का ज्ञान दिया जाता है। वैदिक संस्कृति संस्थानम द्वारा संचालित वैदिक संस्कृति गुरुकुलम में सनातन वैदिक विज्ञान शिक्षा के साथ आधुनिक विज्ञान की शिक्षा योग्य आचार्यों द्वारा पूर्णतः प्राकृतिक परिवेश में माँ गंगा के निकट दिव्य स्थान में उपलब्ध हैं। आवश्यकतानुसार आप संपर्क कर सकते हैं। Contact us .
केशांत संस्कार (Keshant Sanskar) – केशांत संस्कार अर्थ है केश यानी बालों का अंत करना, उन्हें समाप्त करना। विद्या अध्ययन से पूर्व भी केशांत किया जाता है। मान्यता है गर्भ से बाहर आने के बाद बालक के सिर पर माता-पिता के दिए बाल ही रहते हैं। इन्हें काटने से शुद्धि होती है। शिक्षा प्राप्ति के पहले शुद्धि जरूरी है, ताकि मस्तिष्क ठीक दिशा में काम करें। वैदिक संस्कृति संस्थानम द्वारा संचालित वैदिक संस्कृति गुरुकुलम से शिक्षा प्राप्ति के बाद केशांत संस्कार किया जाता था। इस प्रकार शिक्षा पूर्ण होने पर दीक्षा कार्य सम्पन्न कर दीक्षित हुआ जाता हैं।
समावर्तन संस्कार (Samavartan Sanskar)- समावर्तन संस्कार अर्थ है फिर से लौटना। आश्रम या गुरुकुल से शिक्षा प्राप्ति के बाद व्यक्ति को फिर से समाज में लाने के लिए यह संस्कार किया जाता था। इसका आशय है ब्रह्मचारी व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक रूप से जीवन के संघर्षों के लिए तैयार किया जाना।
विवाह संस्कार ( Vivah Sanskar) – यह धर्म का साधन है। विवाह संस्कार सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। इसके अंतर्गत वर और वधू दोनों साथ रहकर धर्म के पालन का संकल्प लेते हुए विवाह करते हैं। विवाह के द्वारा सृष्टि के विकास में योगदान दिया जाता है। इसी संस्कार से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है। शास्त्रोचित विधान द्वारा योग्य आचार्यों के मार्गदर्शन से सम्पन्न विवाह जीवन मे सुख और सम्पन्नता लाता हैं।
अंत्येष्टी संस्कार (Antyesti Sanskar)- अंत्येष्टि संस्कार इसका अर्थ है अंतिम संस्कार। शास्त्रों के अनुसार इंसान की मृत्यु यानि देह त्याग के बाद मृत शरीर अग्नि को समर्पित कर पंचभूतों में विलय कर दिया जाता हैं , ऐसा माना जाता हैं कि शरीर पंचभूतों से निर्मित होता हैं और उसे उन्हीं पंचभूतों में विलय कर देने से जो जहाँ से आया हैं उसे उसी प्रकृति में समर्पित कर दिया जाना चाहिए जहां से वह जीव अपनी पुनःयात्रा प्रारम्भ कर सकें ! हरे कृष्णा !! भारत की सनातन वैदिक संस्कृति में वर्णित इन्हीं षोडश संस्कारों को विधि पूर्वक एवं सुगमता से सम्पन्न कराने का पुनीत कार्य हमारे " वैदिक संस्कृति संस्थानम " के सुयोग्य आचार्यों के सानिध्य में प्रत्येक वर्ष कराया जाता हैं। आप अपनी आवश्यकतानुसार वैदिक संस्कार शाला से संपर्क कर सकते हैं। संपर्क सूत्र : 09450348864 , 09389060681 Contact Us